मैं कभी --कभी किताब पढ़ते हुए
पन्नों में /शब्दों के बिच में ....
तुम्हें देखने लगता हूँ
इस तरह से तुम्हें देखने में
कुछ देर के लिए एक तसल्ली तो मिलती हैं
पर दूसरे पल ही ....यादों के रंग --बिरंगी चादरों में से
एक बदबू की महक आने लगती हैं
तब यह एहसास होता हैं की ....
मैं तुम्हे नहीं देखता हूँ
बल्कि अपनी कब्र खोदकर खुद को देखता हूँ
इस तरह से यादों के दुश्चक्र में मैं खुद को
हर तरफ घिरा हुआ पता हूँ |
इसलिए आज से मैंने यह तय किया हैं कि
तुम्हें अब देखने के लिए
तुम्हारी ही एक तस्वीर बनकर ही
तुम्हें देखने की एक कोशिश करूँगा
पन्नों में /शब्दों के बिच में ....
तुम्हें देखने लगता हूँ
इस तरह से तुम्हें देखने में
कुछ देर के लिए एक तसल्ली तो मिलती हैं
पर दूसरे पल ही ....यादों के रंग --बिरंगी चादरों में से
एक बदबू की महक आने लगती हैं
तब यह एहसास होता हैं की ....
मैं तुम्हे नहीं देखता हूँ
बल्कि अपनी कब्र खोदकर खुद को देखता हूँ
इस तरह से यादों के दुश्चक्र में मैं खुद को
हर तरफ घिरा हुआ पता हूँ |
इसलिए आज से मैंने यह तय किया हैं कि
तुम्हें अब देखने के लिए
तुम्हारी ही एक तस्वीर बनकर ही
तुम्हें देखने की एक कोशिश करूँगा
No comments:
Post a Comment