Wednesday 20 March 2013

मेरी आँख और नींद में

मेरी आँख और नींद में हर रात

एक गुफ्तगू होती हैं ....

आँख हर पल नींद को अपने पास बुलाती हैं

नींद आँख से तकरीर करती हुई कपूर की तरह

उड़कर किसी बियाबान में विलुप्त हो जाती हैं

आँख बार --बार मुझसे कहती हैं

मरना तो एक दिन तय हैं |

फिर रोज़ --रोज़ जागकर यह तड़प क्यों सहा जाये

शायद !मेरी आँखों को अभी और भी कुछ देखना बाकि हैं

शायद वह इसीलिए अब एक पल के लिए भी आलस नहीं करती हैं

मैंने जो क्रांति का एक सपना आँखों में बुना था

उसी के इंतजार में मेरी आँख नहीं झपकती हैं

आँख की इस उम्मीद पर

मैं भी पूरी रात हँसता रहता हूँ

यह सोचकर की कल कोई मेरे मरते हुए

चहरे को देखकर यह न कह सके की

इसका सपना पूरा नहीं हुआ

और यह उदास होकर मर गया

मेरे हंसते हुए चहरे को जो शख्श एक बार देखेगा

तो एक क्षण के लिए जरूर सोचेगा

की मौत से कभी नहीं डरना चाहिए |

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