Wednesday 20 March 2013

मेरे पास जितना मेरा सच हैं

मेरे पास जितना मेरा सच हैं
जिसे मैंने जिया हैं
आज वही मेरी कविता हैं
और वही मेरी कहानी भी
मेरा जो बचपन हैं .....
वही मेरे जीवन का सबसे बेहतरीन जेवर हैं
जिसे मेरी माँ ने सीचा हैं और सजाया हैं
शायद आज बहुत कुछ इसी के चलते
मुझे हर बच्चे में अपना ही चेहरा दिखता हैं |
और मेरी जवानी लोहे की तरह
लोगो का एक सहारा बनकर चलती रही
इसीलिए मैं भीड़ को भी अपना एक परिवार ही मानता हूँ
जिंदगी में दर्द और लाचारी फुल की तरह खिले हुए मिले
इसीलिए तब मेरे अन्दर दुनियां को समझने के लिए
एक बेहतरीन हुनर मिला
मेरे सपने ठीक वैसे ही टूटते रहे
जिस तरह से मेरे घर का खपरैल टूटता रहा
इसीलिए मैं घर के होने की कीमत को समझता हूँ
रोज पेट की भूख को मजबूरियों से रंगता आ रहा हूँ
इसी गुण के चलते आज लेखक बनने की एक जिद कर बैठा हूँ
मेरे जीवन का सच उस छेनी के जैसा हैं
जो रोज मार खाने ने बावजूद भी अपना धर्म
कभी नहीं भूलती हैं

No comments:

Post a Comment