जब मैं रात में किसी सफ़र पर होता हूँ
अकेले इतना अकेले की मुझे अपनी सांसों
की आहट से भी डर... बहुत डर लगता हैं
उस वक्त तुम बहुत याद आते हो |
और जब मैं युद्ध मैदान में बिना हथियार के
खड़ा होता हूँ .....उस वक्त भी तुम बहुत याद आते हो
और मैं बिना हथियार के लड़ते हुए भी
पराजित होता हुआ भी खुद को लज्जित महसूश नहीं करता हूँ
जानती हो क्यों ?
क्योकि इस कुलबुलाती हुई चेतना में तुम्ही एक नयी उर्जा भरती हो
काश !एक बार तुम बुझे अपनी बांहों में लेकर कहो की
एक बार फिरसे हिमालय से एक गंगा और उतार लाओं
तो मैं एक बार फिरसे एक और भागीरथ प्रयास करूँ
तुम मुझसे एक बार कहो की मैं इस दुनियां से लड़कर
लोगो को एक सुख भरी नींद दो
लोगो की थाली से दूर कर दो दुःख -दर्द
तुम एक बार अपनी बाँहों में लेकर कहो तो सही
तब देखो हर सुबह आसमान से सूरज नहीं निकलेगा
बल्कि लोगो की आवाज निकलेगी
की भाई मैं भी तुम्हारे साथ हूँ
इस कुलबुलाती हुई चेतना को आज कोई अर्थ दे दो
ताकि मैं युद्ध मैं लड़ता हुआ मरुँ भी तो
मैं यह अधिकार के साथ कह सकूँ की वह भी मेरे
साथ युद्ध में लड़ी थी |
अकेले इतना अकेले की मुझे अपनी सांसों
की आहट से भी डर... बहुत डर लगता हैं
उस वक्त तुम बहुत याद आते हो |
और जब मैं युद्ध मैदान में बिना हथियार के
खड़ा होता हूँ .....उस वक्त भी तुम बहुत याद आते हो
और मैं बिना हथियार के लड़ते हुए भी
पराजित होता हुआ भी खुद को लज्जित महसूश नहीं करता हूँ
जानती हो क्यों ?
क्योकि इस कुलबुलाती हुई चेतना में तुम्ही एक नयी उर्जा भरती हो
काश !एक बार तुम बुझे अपनी बांहों में लेकर कहो की
एक बार फिरसे हिमालय से एक गंगा और उतार लाओं
तो मैं एक बार फिरसे एक और भागीरथ प्रयास करूँ
तुम मुझसे एक बार कहो की मैं इस दुनियां से लड़कर
लोगो को एक सुख भरी नींद दो
लोगो की थाली से दूर कर दो दुःख -दर्द
तुम एक बार अपनी बाँहों में लेकर कहो तो सही
तब देखो हर सुबह आसमान से सूरज नहीं निकलेगा
बल्कि लोगो की आवाज निकलेगी
की भाई मैं भी तुम्हारे साथ हूँ
इस कुलबुलाती हुई चेतना को आज कोई अर्थ दे दो
ताकि मैं युद्ध मैं लड़ता हुआ मरुँ भी तो
मैं यह अधिकार के साथ कह सकूँ की वह भी मेरे
साथ युद्ध में लड़ी थी |
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