Thursday 14 March 2013

हम इस जिंदगी का सच लिखेगें

हम इस जिंदगी का सच लिखेगें
भले से खुदा बहरा हो गया हो
भले से राम अब दुबारा लौटकर
अयोध्या नहीं आयेगें
या ताजमहल अब दुबारा नहीं बनेगा
लेकिन हर आशिक अब शाहजहाँ से कम प्यार भी नहीं करेगा
और हर प्रेमिका अब मुमताज से कम भी नहीं होगीं।

मैं लिखूंगा सच अपनी जिंदगी का
क्योकि मेरे आसूओं में अभी नमक का स्वाद बाकी हैं,
जबकि मैं यह जानता हूँ ....
मेरे लिखने से यह सरकार जग जायेगी
और सड़को की दिशा को मोड़ देगीं ।

सरकार कुछ नहीं करेगी
मैं जितना ही लिखूंगा
वह बाजार के रास्ते
मेरी गली में अपना पाँव रख देगीं
और मेरी सोयी हुई प्रेमिका को जगाकर
मुझसे दूर लेकर चली जायेगी ।

मैं जब भी लिखूंगा सच
मेरी बस्ती के लोग विस्थापित हो जायेगें
और एक दिन पत्थर की तरह
किसी चौराहे पर खड़ा मिलेगें
मैं लिखूंगा सच
क्योकि तश्वीर में
बाबूजी का चेहरा
सूरज से आँख मिलाता हुआ दिखता हैं
और माँ के दांतों में
अभी भी इतनी ताकत बची हैं कि
उनके मुँह में चना ऐसे बोलता हैं
जैसे मेरे पर्स में कुछ सिक्के बोलते हैं।
मैं लिखूंगा सच
क्योकि मेरे गाँव के बच्चे
अभी भी मिट्टियों में ही चलते हैं
मैं लिखूंगा सच
क्योकि अभी भी भुन्नू के पाँव में चप्पल नहीं हैं
और अभी भी उनकी आँखों में इतनी रोशनी हैं कि
गाँव के सारे भूत उनको देखकर भाग जाते हैं।

मैं लिखूंगा सच
क्योकि मेरे गाँव की स्त्रियाँ
कभी भी बलात्कार का रिपोर्ट लिखवाने
किसी थाने में नहीं जाती हैं .....
मैं कितना भी लिखू सच
मेरे विरोधी मुझसे और भी ज्यादा मजबूत होंगे
मेरी बातो का उनपर कोई असर नहीं होगा
बल्कि वे और मजबूत हो जायेगें
और फिर वे
एक नदी के इज्जत के साथ खिलवाड़ करेगें
और एक पहाड़ को घायल करेगें
और एक जंगल की हत्या करेगें ।


लेकिन मैं लिखूंगा सच
क्योकि मेरे गाँव के बच्चे
आज भी आकाश में पतंग उड़ाते हुए कहते हैं कि
हम भी एक दिन आसमान में उड़ेगें
और आज भी सावन में गाँव की स्त्रियाँ
अंजुरी में पानी भरकर अपने प्यार को
अपने अन्दर सींचती हैं
हम इस जिंदगी का सच लिखेगें
क्योकि अभी भी
हमारे जानवरों के नाम हीरा --मोती ही रखे जाते हैं।। _

नीतीश मिश्र

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