जब कभी आँगन में
खड़ा होकर
आकाश को देखता हूँ
सुने से आसमान में
माँ ही मुस्कुराती हुई दीखती हैं |
यह मेरी नज़रों का फेर नहीं हैं,
क्योकि मैं सबसे पहले माँ
की ही चेहरा देखा था इस दुनियां में |
खड़ा होकर
आकाश को देखता हूँ
सुने से आसमान में
माँ ही मुस्कुराती हुई दीखती हैं |
यह मेरी नज़रों का फेर नहीं हैं,
क्योकि मैं सबसे पहले माँ
की ही चेहरा देखा था इस दुनियां में |
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