मैं कहाँ लिखूं प्यार .....
जहाँ भी लिखता हूँ
कभी धर्म की धमकी,कभी जाति की धमकी
देकर मिटा देतों हो प्यार को ......
जैसे --तुम्हे घर जलाने में शर्म नहीं आती
वैसे -ही तुम प्यार को भी जला देतें हो,
उसके बावजूद भी मैं प्यार लिखता हूँ
कभी धूप के ऊपर/कभी हवा के ऊपर
और मैं लिखूंगा गंगा की लहरों के ऊपर प्यार
आओं मिटाओ प्यार को ......[.नीतीश मिश्र]
जहाँ भी लिखता हूँ
कभी धर्म की धमकी,कभी जाति की धमकी
देकर मिटा देतों हो प्यार को ......
जैसे --तुम्हे घर जलाने में शर्म नहीं आती
वैसे -ही तुम प्यार को भी जला देतें हो,
उसके बावजूद भी मैं प्यार लिखता हूँ
कभी धूप के ऊपर/कभी हवा के ऊपर
और मैं लिखूंगा गंगा की लहरों के ऊपर प्यार
आओं मिटाओ प्यार को ......[.नीतीश मिश्र]
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