Wednesday 20 March 2013

साथी मजबूत कर लो कंधें

साथी मजबूत कर लो कंधें
अब हमें नहीं जीना हैं
गुलाम इच्छाओं के नीचे,
हमारे पूर्वज अगर फेंक देतें
राजशाही,नौकरशाही ....
आज हम आजाद होकर
सीना तानकर कहते
हम आजाद परिंदे हैं
लेकिन!हम कायरों की तरह
भैंस हो कर
सिर्फ और सिर्फ जुगाली करते रहे

लेकिन अब हमें उठना ही होगा
नहीं अवतार होगा किसी का
अवतार बस तब होता हैं
जब गरीबों के मुहं से
मंदिर को रोटी छिनना होता हैं
अब हमें आँखों में पानी की जगह
लहू भरकर घर से निकलना होगा
किसी उदास सन्यासी की तरह
भगवान को नहीं खोजना हैं
हमें यदि कुछ खोजना हैं!
सिर्फ! वे सपने, जो कहीं राख होकर
किसी श्मशान में कराह!रहे होगें।

अब हमें निकलना ही होगा
सूरज भी हमारा तिलक करने के
लिए तैयार हैं,
गौरैया भी हमें शुभकामनायें देकर
कह रही हैं कि एक बार मेरें पेट के
लिए भी लड़ना
क्योकि मैं बहुत दिनों से भूखी हूँ,

गाय भी मुस्कुरा रही हैं
क्योकि हमारे जाने के बाद, वह
खुटा को लात मार देंगी।
हम लड़ेंगें उस पेड़ के लिए
जो अपना फल कभी नहीं खा पाया
हम लड़ेंगें हर मजदूर के लिए
जो पेट में पानी भरकर
कुए की तरह किसी दरवाजे पर
अपने सपनों को बेचकर मरते हुए
रोज जिन्दा होने का एक नाटक करता था
हम लड़ेंगे उस औरत के लिए
जिसे वासना से पराजित कर के
एक देवी का रूप दे दिया।
हम लड़ेंगें उस बचपन के लिए
जो अभाव के आगे दम तोड़ दीया
हम लड़ेगें अपनी जवानी के लिए
जहाँ हम सपनों के साथ जी नहीं पाए,
हम लड़ेंगे उस खेत के लिए
जो मौसम से रोज मारखाने के बाद भी
उसी के इंतजार में अब तक आँख खोल
के बैठा हैं
हम लड़ेंगें अपनी नींद के लिए भी
लड़ेंगें साथी मरते दम तक लड़ेंगे
हथियार से भी लड़ेंगें,शब्दों से भी
अपनी सांसों की हर एक बूंद से लड़ेंगें
लड़ कर मरेंगे
यु ही जवानी को अब
बदनाम नहीं करेंगे
साथी!अगर मैं मर गया तो
मुझे मेरी माँ के पास दफना देना ।।

नीतीश मिश्र

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