Wednesday 20 March 2013

रात को अपने सीने में बांध लिया हूँ ......

देखो तुम ,
मैंने कैसे रात को
अपने सीने में बांध
लिया हूँ ......
मैं कोई सफ़ेद शब्द
नहीं हूँ
जो हवा के झोंखे
के मार के आगे
मैं अपना रंग बदल दूँ
मैं आग से निकला हुआ हूँ
मैं खून से रंगा हुआ हूँ
इसीलिए जलकर कभी
राख नहीं हुआ |
तुम्हारा हाथ अगर ...
मेरे हाथ से मिल जाये तो
कल हम हवा को भी
अपनी दिशा में मोड़ सकते हैं | नीतीश मिश्र ]

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