मैंने जीवन के
दौड़ में जितने भी
जख्म खाए
उसमे भागीदार सिर्फ
माँ का कलेजा रहा
और जीतनी भी छोटी -छोटी
खुशियाँ भी पायी
तब माँ की आँखों ने
ही गरीबी में भी दीवाली मनायी ।
दौड़ में जितने भी
जख्म खाए
उसमे भागीदार सिर्फ
माँ का कलेजा रहा
और जीतनी भी छोटी -छोटी
खुशियाँ भी पायी
तब माँ की आँखों ने
ही गरीबी में भी दीवाली मनायी ।
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