जब कभी रुनझुन सी हवा
आकर बैठती हैं माथे पर
उसकी यादों के रंग बिरंगे फूल
अन्न की तरह लगने लगता हैं
कभी कभी उसका ऐसे आना
जैसे सूखे पौधे पर एक नई कोपल का चढ़ने जैसा लगता हैं
ऐसे में अंधेरे में कई आईने टूटते हैं
लेकिन आईने टूटकर भी आईने ही रहते हैं
और मैं बिखर जाता हूँ
पंद्रह अगस्त की तरह जैसे उस दिन हमारी धरती बिखरी थी
पंद्रह अगस्त 1947 को हिंदुस्तान की धरती खूब रोई थी
क्योकि इस दिन कुछ गधहों ने एक माँ के व्यक्तित्व को दो भागों में बाँट दिया था
वर्ष 2015 के पंद्रह अगस्त को
मेरा भी व्यक्तित्व विभाजित हो गया
उस दिन दिल्ली बहुत हंस रही थी
क्योकि कुरुक्षेत्र में इस बार फिर अभिमन्यु जब निहत्था था तभी उसपर हमला बोला गया
लेकिन शुक्र हैं
इस बार के कुरुक्षेत्र के युद्ध में अभिमन्यु मरा नहीं बल्कि घायल हुआ हैं
यह कुरुक्षेत्र का संस्कार हैं
निहत्थों पर हमला बोलना
मै पराजित होकर अपने आईने पास हूँ
और वही से देखता हूँ
पश्चिम में लहरा रहा हैं मेरा हरा रंग
जब व्यक्तित्व घायल होता हैं
तब इतिहास भी बदलता हैं
मौसम भी बदल जाता
ईश्वर भी
आज भी जब अँधेरे में देखता हूँ अपना शव
जिसे कुत्ते लिए जा रहे हैं
श्मशान में
और एक करुणा के साथ
अपने मद्धिम स्वर में लिख रहे हैं मिटटी में मेरी तमाम अंधूरी कहानियां
अब जबकि मैं घायल हूँ
उजाले को यह बात मालूम हैं
मैं फिर कुरुक्षेत्र में लौटकर आऊंगा
और उजाला शुरू कर दिया हैं हथियार बनाना
जबकि मैं कोई युद्ध हथियार से नहीं विस्वास से लड़ा हूँ
आज जब जूतो से पूछता हूँ
क्योकिं यह मेरे सफर के सबसे विश्वसनीय साथी रहे हैं
क्या मैं फिर युद्ध लड़ सकता हूँ
जूते बड़े ही विश्वास के साथ कहते
हां
और चाँद छुप जाता हैं
मेरे अँधेरे का जासूस कोई और नहीं बल्कि यह चाँद हैं
जो अक्सर मेरे साथ विश्वासघात करता आया हैं ॥
आकर बैठती हैं माथे पर
उसकी यादों के रंग बिरंगे फूल
अन्न की तरह लगने लगता हैं
कभी कभी उसका ऐसे आना
जैसे सूखे पौधे पर एक नई कोपल का चढ़ने जैसा लगता हैं
ऐसे में अंधेरे में कई आईने टूटते हैं
लेकिन आईने टूटकर भी आईने ही रहते हैं
और मैं बिखर जाता हूँ
पंद्रह अगस्त की तरह जैसे उस दिन हमारी धरती बिखरी थी
पंद्रह अगस्त 1947 को हिंदुस्तान की धरती खूब रोई थी
क्योकि इस दिन कुछ गधहों ने एक माँ के व्यक्तित्व को दो भागों में बाँट दिया था
वर्ष 2015 के पंद्रह अगस्त को
मेरा भी व्यक्तित्व विभाजित हो गया
उस दिन दिल्ली बहुत हंस रही थी
क्योकि कुरुक्षेत्र में इस बार फिर अभिमन्यु जब निहत्था था तभी उसपर हमला बोला गया
लेकिन शुक्र हैं
इस बार के कुरुक्षेत्र के युद्ध में अभिमन्यु मरा नहीं बल्कि घायल हुआ हैं
यह कुरुक्षेत्र का संस्कार हैं
निहत्थों पर हमला बोलना
मै पराजित होकर अपने आईने पास हूँ
और वही से देखता हूँ
पश्चिम में लहरा रहा हैं मेरा हरा रंग
जब व्यक्तित्व घायल होता हैं
तब इतिहास भी बदलता हैं
मौसम भी बदल जाता
ईश्वर भी
आज भी जब अँधेरे में देखता हूँ अपना शव
जिसे कुत्ते लिए जा रहे हैं
श्मशान में
और एक करुणा के साथ
अपने मद्धिम स्वर में लिख रहे हैं मिटटी में मेरी तमाम अंधूरी कहानियां
अब जबकि मैं घायल हूँ
उजाले को यह बात मालूम हैं
मैं फिर कुरुक्षेत्र में लौटकर आऊंगा
और उजाला शुरू कर दिया हैं हथियार बनाना
जबकि मैं कोई युद्ध हथियार से नहीं विस्वास से लड़ा हूँ
आज जब जूतो से पूछता हूँ
क्योकिं यह मेरे सफर के सबसे विश्वसनीय साथी रहे हैं
क्या मैं फिर युद्ध लड़ सकता हूँ
जूते बड़े ही विश्वास के साथ कहते
हां
और चाँद छुप जाता हैं
मेरे अँधेरे का जासूस कोई और नहीं बल्कि यह चाँद हैं
जो अक्सर मेरे साथ विश्वासघात करता आया हैं ॥
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