Wednesday 22 April 2015

दंगे के बाद की सुबह


दंगे के बाद की सुबह
बहुत बदबुद्दार थी
आज सुबह -सुबह ही पता चला
आदमी सबसे ख़तरनाक होता हैं
क्योकि वह उठा लेता हैं एक समय के बाद
अपनो के खिलाफ हथियार .....
ऐसा नहीं की इस शहर मे
मेरा पहली बार आना हो रहा हैं
इसके पहले मैं जब यहाँ आया
हर बार यही लगा की
इस शहर की सबसे अधिक खूबसूरत होने की वजह एक ही हैं
क्योकि इस शहर मे बचे हुए हैं
प्रेमी -प्रेमिका !
इस शहर के पास हैं
बहुत सारी कहानियाँ हैं
लेकिन आज सुबह यही लग रहा था की
मर गया शहर और जिंदा हो गई मंदिर
और जिंदा हो गई एक मस्जिद
अब शहर मे जब कभी आउँगा
तो नहीं दिखाई देगी
चाय की कोई दुकान
जहाँ से मैं देख सकूँ
की तुम्हारा ईश्वर कैसा हैं ||

नीतीश मिश्र

No comments:

Post a Comment