Wednesday 22 April 2015

बचे हुए दिनो में देखने को मिल सकता हैं प्यार

क्या इन बचे हुए दिनो में
देखने को मिल सकता हैं
एक भिखमंगे को मिल गई अपनी मंज़िल
या एक बौने ने
धरती के किसी कोने मे लिख दिया हैं अपना प्यार
क्या बचे हुए दिनो मे सुना जा सकता हैं
दादी की वह आवाज़
जिसे घर के दरवाजे भी सुनकर डरते थे
क्या बचे हुए दिनो में कभी लौटकर आएगा डाकिया
और सुनाएगा बाबूजी का अब वेतन बढ़ गया हैं
क्या बचे हुए दिनो मे देखने को मिलेगा
गाँव मे कोई नया बगीचा तैयार हो रहा हैं
क्या बचे हुए दिनो में हम केवल अयोध्या की डरावनी कहानी सुनेंगे ||
क्या हमने इसलिए अपने दिन हिफ़ाज़त से बचाकर रखे हुए थे ||

नीतीश मिश्र

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