क्या इन बचे हुए दिनो में
देखने को मिल सकता हैं
एक भिखमंगे को मिल गई अपनी मंज़िल
या एक बौने ने
धरती के किसी कोने मे लिख दिया हैं अपना प्यार
क्या बचे हुए दिनो मे सुना जा सकता हैं
दादी की वह आवाज़
जिसे घर के दरवाजे भी सुनकर डरते थे
क्या बचे हुए दिनो में कभी लौटकर आएगा डाकिया
और सुनाएगा बाबूजी का अब वेतन बढ़ गया हैं
क्या बचे हुए दिनो मे देखने को मिलेगा
गाँव मे कोई नया बगीचा तैयार हो रहा हैं
क्या बचे हुए दिनो में हम केवल अयोध्या की डरावनी कहानी सुनेंगे ||
क्या हमने इसलिए अपने दिन हिफ़ाज़त से बचाकर रखे हुए थे ||
देखने को मिल सकता हैं
एक भिखमंगे को मिल गई अपनी मंज़िल
या एक बौने ने
धरती के किसी कोने मे लिख दिया हैं अपना प्यार
क्या बचे हुए दिनो मे सुना जा सकता हैं
दादी की वह आवाज़
जिसे घर के दरवाजे भी सुनकर डरते थे
क्या बचे हुए दिनो में कभी लौटकर आएगा डाकिया
और सुनाएगा बाबूजी का अब वेतन बढ़ गया हैं
क्या बचे हुए दिनो मे देखने को मिलेगा
गाँव मे कोई नया बगीचा तैयार हो रहा हैं
क्या बचे हुए दिनो में हम केवल अयोध्या की डरावनी कहानी सुनेंगे ||
क्या हमने इसलिए अपने दिन हिफ़ाज़त से बचाकर रखे हुए थे ||
नीतीश मिश्र
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