Wednesday 22 April 2015

सड़्क पर आदमी सोया हैं

सड़्क पर एक आदमी ऐसे सोया हैं
जैसे वह सोते _सोते आकाश में कुछ खोज रहा हैं
वह खोज सकता हैं कुछ चिल्लर पैसे
या पतंग
या घायलो का पता
सड़्क पर सोया आदमी घंटो से करवट नहीं लिया हैं
वह आकाश को बताना चाहता हैं
इंसानो के फिदरत मे नहीं होता हैं करवट बदलना
वह सोए -सोए एक दिन ऐसे गुम हो जाएगा
जैसे गुम हो जाते हैं
हमारे जेहन मे रखे हुए शब्द
सड़्क पर सोए हुए आदमी को नहीं चिंता हैं
कि उसे ऐसे मे देखकर लोग क्या सोचेंगे
या हवा या धूप क्या सोचेगी
सड़्क पर सोया हुआ आदमी कभी -कभी आँखे उठाकर देखता ज़रूर हैं
पर उसकी आँखो मे नहीं बनती किसी की तस्वीर
गोया आदमी के साथ -साथ आदमी की आँखे भी अब विश्वास करना छोड़ दी हैं
सड़्क पर सोया आदमी एक दिन खो जाएगा
और वहाँ पर रहेगी कुछ रिक्तता जिसे
समय भी नहीं भर पाएगा
बहुत होगा तो कभी एक बच्चा इस जगह से गुजरेगा
और उसे सुनाई देगी सोए हुए आदमी की आवाज़
और बच्चा एक बार फिर खड़ा होगा सोए हुए आदमी को खोजने के लिए
बच्चा जब खोजकर थक जाएगा
और नहीं पाएगा कहीं सोए हुए आदमी को
तब बच्चा लिखेगा एक कविता ||

नीतीश मिश्र

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