Wednesday 22 April 2015

ये दुनिया कहीं तुम्हारी तो नहीं है


जिस तरह से मेरे सामने
तुम मेरी दुनिया को बदल रहे हो
उससे लगने लगा है कि
अब ये दुनिया पूरी तरह से तुम्हारी हो चुकी है
तुम कुरूक्षेत्र में भी इस बात पर जोर देते थे
जिस दिन मैं लोकतंत्र में युद्व जीतना शुरू करूंगा
उसी दिन से दुनिया को अपने रंग में रंगना शुरू कर दूंगा
तुम्हारे ईश्वर का जितनी बार अवतार नहीं हुआ
उससे ज्यादा तुम उनका विस्तार कर दिए
शायद! इसी के चलते अब नहीं होता तुम्हारे यहां किसी देवता या देवी का अवतार
तुमसे बेहतर भला कौन जानता है?
देश में जितनी बड़ी संसद है
उससे कहीं बड़ा तुम्हारे देवताओं का मंदिर है
और तो और अब हर रोज एक नया मंदिर बन रहा है
तुम खुद सोचों
जब थोक के भाव इस तरह से मंदिर और देवता बनेंगे
तो मस्जिद और गिरजाघर में रहने वाले लोग तो तुमसे डरने लगेंगे।
अब तो आलम यह है कि
आसमान में उड़ता हुआ परिंदा भी सांस लेने के लिए
किसी साख पर नहीं बैठता
वह तब तक उड़ता है जब तक उड़ते हुए वह मर न जाए।
गिरजाघर और मस्जिदों में चलने वाली सांसे
इस कदर सहम गई है कि वह जिंदा रहने के लिए
अब तुमसे भीख मांगती है।
कहीं ऐसा तो नहीं है कि ये दुनिया अब तुम्हारी हो गई है
इसलिए तुम लोगोंको घर वापसी करने में लगे हुए हो।
चारों ओर जिस तेजी से तुम्हारा लाल रंग फैल रहा है
उससे अन्य रंगों का आयतन और घनत्व दोनों कम होता जा रहा है
यह तुम्हारा समय है और रंगो के खत्म होने का भी यही समय है।।

नीतीश मिश्र

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