Tuesday 17 March 2015

हम पहरेदार नहीं हैं

हम सदी के शुरू लेकर
अंत तक …
लिखते आ रहे हैं
या सुना रहें हैं
प्रेम की दास्ताँ
या अपनी आत्मकथा
और एक समय के बाद घोषित कर देते हैं
हम सदी के पहरेदार हैं ।
यदि सही में हम पहरेदार होते
तो आज हम कुरुक्षेत्र में पराजित नहीं होते
या उसके दुष्चर्क के पीछे -पीछे नहीं भागते
लेकिन ! हम पहरेदार नहीं हैं
एक पिजड़े में बंद एक सुग्गा भर हैं ॥
हमारे बीच पहरेदार तो वह हैं
जो अपनी आवाज को पहचानता हैं
या जो सदी का एक सेतु हैं ॥

नीतीश  मिश्र
 …

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