Thursday 4 August 2016

मैं कविता नहीं लिखना चाहता

अब मैं कविता नहीं लिखना चाहता 
या कविता लिखने की मुझमे योग्यता नहीं है 
अब मैं केवल और केवल 
प्रेमपत्र लिखना चाहता हूँ 
प्रेमपत्र सिर्फ मैं उस लड़की को नहीं लिखना चाहता हूँ 
जो मुझसे प्रेम करने की साहस रखती थी
बल्कि उस लड़की को भी लिखना चाहता हूँ
जिससे मैं प्रेम करने का साहस रखता था
बल्कि उस लड़की को भी लिखना चाहता हूँ
जो शहर में नदी से भी अधिक खूबसूरत थी
लेकिन मैं उससे प्रेम नहीं कर पाया
मैं उस कपास के पौधे को भी प्रेमपत्र लिखना चाहता हूँ
जिसके धागे का वह वस्त्र पहनती थी
मैं उस घर को भी प्रेमपत्र लिखना चाहता हूँ
जिसमे वह रहा करती थी
मैं उस देवता को भी प्रेमपत्र लिखना चाहता हूँ
जिससे वह मेरे लिए सिर्फ मेरे लिए प्रार्थना करती थी
मैं उस विश्वविद्यालय को भी प्रेमपत्र लिखना चाहता हूँ
जहाँ वह पढ़कर सभ्य होना सिख रही थी
मैं उस बिस्तर को भी प्रेमपत्र लिखना चाहता हूँ
जहाँ से वह पूरी रात सिर्फ मेरे बारे में सोचती थी
मैं उस गांव को प्रेमपत्र लिखना चाहता हूँ
जहाँ से वह चलकर सिर्फ मेरे लिए खाली हाथ आई थी
मैं उसके विषय को प्रेमपत्र लिखना चाहता हूँ
जो उसे इतना अवकाश देता था की वह मेरे बारे में सोच सके
अब मैं कविता नहीं लिखना चाहता हूँ
अब मैं केवल और केवल प्रेमपत्र लिखना चाहता हूँ।
मैं केवल सुबह ही नहीं बल्कि भोर में जब आसमान में तारे सो चुके होते है उस वक्त भी उसे प्रेमपत्र लिखना चाहता हूँ
मैं केवल बसंत में ही नहीं बल्कि खड़ी दुपहरी में रेत के बीच भी प्रेमपत्र लिखना चाहता हूँ।।

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