Saturday 4 June 2016

मेरे शहर में हर रोज एक नया कारवां आता है


मेरे शहर में हर रोज एक नया कारवां आता है
पूरा शहर शाम को उत्सव में तब्दील हो जाता है
सड़के बेजान होकर अपने अर्थ को परिभाषित करती रहती है
दीवारे मूक होकर अपने इतिहास पर मंथन करती है
पेड़ एक बार फिर भविष्य बचाने की खातिर  जद्दोजहद करता है
आदमी वर्तमान की आग में सुलगता हुआ राख होता जा रहा है
मंदिरों से रह - रह कर पुरानी खुशबुए आ रही है
जमीन पर नए- नए नक्शे बन रहे है
हर रोज एक नई इमारत की नींव गहरी होती जा रही है
शहर में हर रोज कुछ न कुछ नया होता जा रहा है
और मैं अभी भी पुराने चांद को लेकर बैठा हूं
जहां से मैं तुम्हारे शहर के रास्ते को देख रहा हूं।
तुम भूख को पहनकर नंगे पाव रूई की तरह हवा में दौड़ लगा रही हो
और मैं यहां उदासी की पंतग उड़ा रहा हूूं।
एक सपने रह रह कर अपना अर्थ खो रहे है
इसके बाद भी मैं हर रोज एक नया सपना अपने भीतर जिंदा कर रहा हूं
शायद सपनों के  साथ जीने की आदत हो गई हो मेरी
सही भी है जब विश्वास टूटते है तब सपनों को कई बार पालना जरूरी हो जाता है
सपने धीरे- धीरे मौत की तरफ ले जाते है
और मैं  अपनी मौत के सन्नाटे से देखता हूं
तुम्हारा होंठ जिस पर मेरा खून चिपका हुआ
तुम्हारा यह चेहरा मुझे मानचित्र सा लगता है
जहां मैं अपने अतीत का नक्श देखता हूं
मैं देखता हूं कि मैं तुम्हारे भीतर धूप की तरह पसर रहा हूं
और तुम कपास की तरह खिल रही हो
इस क्रम में बनता है हमारे बीच रेत में एक सेतु
जिस पर पांव तो नहीं पड़ते है लेकिन एक कारवां जो मेरे भीतर जन्म लेता है वह पूरा का पूरा गुजर जाता है
सब कुछ छूटता जाता है
और मेरे शहर में एक अंधेरा फैलने लगता है
मैं उस अंधेरे से बाहर जाना चाहता हूं
लेकिन जैसे ही मैं बाहर जाने की कोशिश करता हूं
वैसे ही एक नदी आकर खड़ी हो जाती है
जहां तुम हाथ बांधे बैठी हुई दिखाई देती हो
मुझे लगता है यह कोई सपना है
इतने में जैसे ही मैं नदी के भीतर उतरता हूं
वैसे ही आसमान का एक टुकड़ा बर्फ की तरह मेरे बदन पर गिरता है
और में दोहरा होकर तुम्हारे साथ एक सपना देखता हूं
जिसे इतिहास बनाने की कोशिश करता हूं
आज इसी सपने को लेकर तुम्हारे शहर में एक रास्ता देख रहा हूं
जिस पर एक बच्ची तुम्हारे जैसे चलती हुई दिखाई दे रही है
मुझे लगता है यह तुम्हारा पुर्नजन्म तो नहीं है।

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