Monday 18 March 2013

कब्रिस्तान बचा हुआ हैं

कब्रिस्तान में कोई रोजगार नहीं हैं
फिर भी बचा हुआ हैं ....
जबकि दंगे फसाद में
शहर अक्सर घायल हो जाते हैं
और शहर अपना वजूद बचाने के लिए
रोज एक नया रूप बदलता हैं
क्योकि शहर को अपनी सभ्यता पर
अब कोई भरोसा नहीं रह गया हैं ।

कब्रिस्तान बचा हुआ हैं
जैसे --बची हुई हैं
आँखों में अनगिनत बूंदे
बदलते विस्फोटों के वक्त में
कब्रिस्तान का बचना
कहीं न कहीं अपने
प्रेम के बचने का भी विश्वास
बचा हुआ हैं ।

कब्रिस्तान में व्यक्ति
अपने साथ
अपना धर्म लेकर नहीं जाता हैं
बल्कि अपना प्यार लेकर जाता हैं
चाहे प्यार एकतरफा ही क्यों न रहा हो ।

राममंदिर को
बाबर ने गिरा दिया
और बाबरी मस्जिद को
संघियों ने
लेकिन!इतिहास के बनते -बिगड़ते वक्त में भी
कोई कब्रिस्तान घायल नहीं हुआ
जबकि कब्रिस्तान में
कोई फरिस्ता नहीं रहता हैं
कब्रिस्तान बचा रहेगा
आखिरी मनुष्य तक
क्योकि वहाँ लोग
ले गए हैं अपने साथ
अपने --अपने हिस्से का प्यार ।।

नीतीश मिश्र 

1 comment:

  1. बेबाक बयान की कविता | यह साबित करती हुयी कि प्रेम ही रच सकता है सक्षम, समर्थ और सार्थक प्रतिपक्ष. इस श्रृंखला की सभी कवितायें बुरे समय में उम्मीद की कवितायें हैं-अपने सामाजिक सरोकारों का स्पष्ट पक्ष रूपायित करते हुए |
    बधाई

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