जब पास में
हड्डिया और त्वचा थी
लेकिन पांव के पास ज़मीन नहीं थी
और मेरी नींद बरसात में भींग गई थी
उस क्षण
मैं लिख रहा था प्रेमपत्र !
जबकि तुम गहरी नींद में सो रही थी
और कुछ लोग पानी / आग को रंग रहे थे
मैं अपनी सांसो में तुम्हारे शहर का आकाश भर रहा था
और देश भूख में जाग रहा था
धरती / हवा / धूप सुरंग बना रही थी
मेरे चारो और घोड़े दौड़ रहे थे
मेरे होंठो पर एक प्रार्थना थी
जो तुम्हारी नींद की खोह में गायब हो चुकी थी
दुनियां पहाड़ों की तरह खत्म होती जा रही थी
औरते जंगलो की और भाग रही थी
और मैं
प्रेमपत्र लिख रहा था
जबकि मेरे सर पर बैठा चाँद काँप रहा था
और तुम्हारे देवता के सामने
मैं यह गुस्ताखी किये जा रहा था ॥
मैं प्रेमपत्र में खोज रहा था
कभी अपना भारत तो कभी तुम्हारा देश ।
हड्डिया और त्वचा थी
लेकिन पांव के पास ज़मीन नहीं थी
और मेरी नींद बरसात में भींग गई थी
उस क्षण
मैं लिख रहा था प्रेमपत्र !
जबकि तुम गहरी नींद में सो रही थी
और कुछ लोग पानी / आग को रंग रहे थे
मैं अपनी सांसो में तुम्हारे शहर का आकाश भर रहा था
और देश भूख में जाग रहा था
धरती / हवा / धूप सुरंग बना रही थी
मेरे चारो और घोड़े दौड़ रहे थे
मेरे होंठो पर एक प्रार्थना थी
जो तुम्हारी नींद की खोह में गायब हो चुकी थी
दुनियां पहाड़ों की तरह खत्म होती जा रही थी
औरते जंगलो की और भाग रही थी
और मैं
प्रेमपत्र लिख रहा था
जबकि मेरे सर पर बैठा चाँद काँप रहा था
और तुम्हारे देवता के सामने
मैं यह गुस्ताखी किये जा रहा था ॥
मैं प्रेमपत्र में खोज रहा था
कभी अपना भारत तो कभी तुम्हारा देश ।
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