Tuesday 29 September 2015

मैं लिख रहा था प्रेमपत्र

जब पास में
हड्डिया और त्वचा थी
लेकिन पांव के पास ज़मीन नहीं थी
और मेरी नींद बरसात में भींग गई थी
उस क्षण
मैं लिख रहा था प्रेमपत्र !
जबकि तुम गहरी नींद में सो रही थी
और कुछ लोग पानी / आग को रंग रहे थे
मैं अपनी सांसो में तुम्हारे शहर का आकाश भर रहा था
और देश भूख में जाग रहा था
धरती / हवा / धूप सुरंग बना रही थी
मेरे चारो और घोड़े दौड़ रहे थे
मेरे होंठो पर एक प्रार्थना थी
जो तुम्हारी नींद की खोह में गायब हो चुकी थी
दुनियां पहाड़ों की तरह खत्म होती जा रही थी
औरते जंगलो की और भाग रही थी
और मैं
प्रेमपत्र लिख रहा था
जबकि मेरे सर पर बैठा चाँद काँप रहा था
और तुम्हारे देवता के सामने
मैं यह गुस्ताखी किये जा रहा था ॥
मैं प्रेमपत्र में खोज रहा था
कभी अपना भारत तो कभी तुम्हारा देश ।

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