Friday, 11 September 2015

हम ठहरे हुए लोग हैं

हम ठहरे हुए लोग हैं
हम कभी लड़ाई में थे ही नहीं
हम लोग तो विचारों का पर्दा लेकर चलने वालों में से हैं
हम जिए कम बोलते रहे ज्यादा
उधर हत्यारा
खरगोश के साथ दौड़ रहा था
उसकी आवाज से सागर भी कांपता था
हमे यह सब मालूम था
फिर भी हम
धूप के खिलाफ खड़े नहीं हुए
हम लोग ठहरे हुए लोग हैं
इसलिए हम बस
मौत का मातम मनाना जानते हैं।
हम लोग ठहरे हुए हैं।।
नीतीश मिश्र

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