हम ठहरे हुए लोग हैं
हम कभी लड़ाई में थे ही नहीं
हम लोग तो विचारों का पर्दा लेकर चलने वालों में से हैं
हम जिए कम बोलते रहे ज्यादा
उधर हत्यारा
खरगोश के साथ दौड़ रहा था
उसकी आवाज से सागर भी कांपता था
हमे यह सब मालूम था
फिर भी हम
धूप के खिलाफ खड़े नहीं हुए
हम लोग ठहरे हुए लोग हैं
इसलिए हम बस
मौत का मातम मनाना जानते हैं।
हम लोग ठहरे हुए हैं।।
नीतीश मिश्र
हम कभी लड़ाई में थे ही नहीं
हम लोग तो विचारों का पर्दा लेकर चलने वालों में से हैं
हम जिए कम बोलते रहे ज्यादा
उधर हत्यारा
खरगोश के साथ दौड़ रहा था
उसकी आवाज से सागर भी कांपता था
हमे यह सब मालूम था
फिर भी हम
धूप के खिलाफ खड़े नहीं हुए
हम लोग ठहरे हुए लोग हैं
इसलिए हम बस
मौत का मातम मनाना जानते हैं।
हम लोग ठहरे हुए हैं।।
नीतीश मिश्र
No comments:
Post a Comment