रेगिस्तान में
कुरेदता हूँ
सपनों को
देखता
लाल मिर्च की तरह
मेरे सपने
कहीं भीतर सूखे हुए हैं
अब लगता हैं
यह मेरे
सपने नहीं हैं
मेरे देह की सिकुड़ी हुई हड्डिया है।
और शब्द मेरी मुठ्ठी से
रेतों के मानिंद अपने अंदर से उम्मीद खोकर
मुहाने पर मुझे निहत्था छोड़ने के लिए तैयार हैं।।
कुरेदता हूँ
सपनों को
देखता
लाल मिर्च की तरह
मेरे सपने
कहीं भीतर सूखे हुए हैं
अब लगता हैं
यह मेरे
सपने नहीं हैं
मेरे देह की सिकुड़ी हुई हड्डिया है।
और शब्द मेरी मुठ्ठी से
रेतों के मानिंद अपने अंदर से उम्मीद खोकर
मुहाने पर मुझे निहत्था छोड़ने के लिए तैयार हैं।।
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