Thursday 24 September 2015

भूलना

कई बार
भूलना जरुरी होता
हम भूल जाते हैं
मोहल्ले के हत्यारे को
भूल जाते हैं
कस्बे के उन सभी चेहरों को
जिनकी दुर्घटना में मौत हुई थी
हम भूल जाते हैं
उस लड़की को
जो कुछ रोज पहले मुहल्लें से चली गई
हम भूल गए हैं
उन मकानों को जिन्हें बिल्डर ने
हम सभी के सामने कब्जा किया था
हम भूल गए हैं
अपनी बस्ती के स्कूलों को
हम भूल गए हैं
उन सभी मास्टरों को
जिनसे हमने समय का व्याकरण सीखे थे
हम भूल गए हैं
अपने कस्बे के सबसे पुराने पेड़ को / सबसे पुरानी दुकान को
हम भूल गए हैं
अपने मुहल्ले के सभी बच्चों को
एक दिन हम भूल जायेंगे
संविधान को
एक दिन हम भूल जायेंगे
रामायण / महाभारत की कहानियों को
हम भूल जायेंगे
जब तक दिल्ली हंसती रहेगी
हम अपने समय में सब भूल जायेंगे
हम भूल जायेंगे
अपनी हत्या के दिन !!
नीतीश मिश्र

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