आज हम मौत भी बेचकर
जीना चाहते हैं
अपने सपनों को डमरू बनाकर
अपने होने को बचाये हुए हैं
हम कहीं नहीं हैं
यदि हम कभी खुद को दीवारो में
नारो में तमाशों में देखकर खुद को खोने का मान लेते हैं
और यही से हम भटक गए हैं
हम भटके हुए लोग हैं
इसलिए खुद भटकते हैं
और सोचकर खुश होते हैं
धरती का केंद्र हिल रहा हैं।।
जीना चाहते हैं
अपने सपनों को डमरू बनाकर
अपने होने को बचाये हुए हैं
हम कहीं नहीं हैं
यदि हम कभी खुद को दीवारो में
नारो में तमाशों में देखकर खुद को खोने का मान लेते हैं
और यही से हम भटक गए हैं
हम भटके हुए लोग हैं
इसलिए खुद भटकते हैं
और सोचकर खुश होते हैं
धरती का केंद्र हिल रहा हैं।।
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