Sunday 20 September 2015

धरती का केंद्र हिल रहा हैं

आज हम मौत भी बेचकर
जीना चाहते हैं
अपने सपनों को डमरू बनाकर
अपने होने को बचाये हुए हैं
हम कहीं नहीं हैं
यदि हम कभी खुद को दीवारो में
नारो में तमाशों में देखकर खुद को खोने का मान लेते हैं
और यही से हम भटक गए हैं
हम भटके हुए लोग हैं
इसलिए खुद भटकते हैं
और सोचकर खुश होते हैं
धरती का केंद्र हिल रहा हैं।।

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