Friday 11 September 2015

कल रात सेपरेशान हूँ

कल रात से ही परेशान हूँ
जबसे खबर सुना हूँ
मेरा एक दोस्त
इलाहबाद में बीमार हैं
इतना बीमार हैं
उसे पता ही नहीं
हिंदी का लेखक क्या कर रहा हैं
उसे यह भी नहीं मालूम बाजार क्या कर रही हैं
उसे यह भी नहीं मालूम
हिन्दू क्यों इतना खुश हैं
और मुसलमान क्यों इतना नाराज हैं
उसे यह भी नहीं मालूम
स्त्रियां पूंजीवाद की गुलाम हो रही हैं
उसे यह भी नहीं मालूम
अयोध्या के देवता से शक्तिशाली
अब एक विधायक हो गया है ।
वह कुछ भी नहीं जानना चाहता हैं
बस बार बार पूछता रहा
क्या नीतीश मैं बच जाऊंगा ?
मैं फोन पर चुप चाप हो गया
और दिवार पर लिखता रहा रात भर
क्या नीतीश मैं बच जाऊंगा ??

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