Friday 11 September 2015

बाप डाकिए का देखता रहता हैं रास्ता

जब आसमान में सूर्योदय होता हैं
घर में बाप के साथ झाड़ू भी जागती हैं
बाप आसमान को पकड़कर
चौखट पर बैठ जाता हैं
और डाकिए का रास्ता देखता हैं
जबसे बेटी गई हैं शहर
बाप उदास होकर खड़ा हैं
बेटी की चिठ्ठी आती हैं
बाप बेटी की परेशानियां जानकर मौन हैं
फिर भी बेटी बाप की उम्मीद हैं
इसलिए बाप खुश हैं
यह सोचकर की एक दिन बेटी की ऐसी चिठ्ठी आएगी
जिसमे लिखा रहेगा
पिताजी आज आपकी बेटी बहुत खुश हैं
यही पक्ति पढ़ने के लिए
बाप इंतजार कर रहा हैं
और बेटी शहर में दौड़ रही किसी रेलगाड़ी की तरह ।।

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