Saturday 3 October 2015

मैं रात भर सोचता रहा

मैं रात भर खोजता रहा
तुम्हारी मौत के कारणों को
मैं रात भर सोचता रहा
लेकिन खुद को विश्वास नहीं दिला पा रहा था
अब तुम्हारे बाद कोई नहीं मरेगा
मैं कुछ भी नहीं कर पा रहा हूँ मित्र
बस मैं साँस ले रहा हूँ
और तुम्हारे शहर में
पुरानी हँसी के पास भींग रहा हूँ
तुम्हारे शहर में
तुम्हें एक बार फिरसे चाय की दुकान पर खोज रहा हूँ
कभी किताबों की दुकानों पर
कभी बस स्टैंड पर
और धीरे - धीरे तुम्हें अपने भीतर भर रहा हूँ।।

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