Saturday 3 October 2015

यही हैं आज का सच

प्रगतिशीलता !
हाँ प्रगतिशीलता !!
बहुत अच्छा शब्द था
पर तब जब इसे बनाया गया था
यह उस समय उतना ही सुंदर था
जैसे ताजमहल!
आज प्रगतिशीलता के नाम पर
एक भ्रम
एक अहंकार
एक झूठ पहनकर
हम पक्तियों के बीच खड़े हो गए यह जताने के लिए हम ही संभालेंगे अगली पारी ।
हम लड़ सकते नहीं
हम कायरों की तरह सिर्फ दूसरों के लिए आईना बेचते हैं।
यही हैं
आज का सच
जिसे हम बदल नहीं पा रहे हैं।।

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