Friday 25 January 2013

आदमी का होना

मैं जाना चाहता हूँ
उस आदमी के पास
जो ईमानदारी से जोड़ रहा हो
बच्चों के टूटे हुए खिलौनों को
या गढ़ रहा हो पेन्सिल/किताब
या ईजाद कर रहा हो
कोई नया खिलौना।
जो बच्चों के लिए एक सबक बन सकें
या तराश रहा हो कोई ऐसी पाठशाला
जहाँ कोई जाति का रंग न हो
मैं,जाना चाहता हूँ उस आदमी के पास
जो बनाता हैं लोगों की टूटी हुई चप्पलें
मैं जाना चाहता हूँ मजदूर के पास
जो अपने शहर पर आसमान लिए
शहर -भर घूमता रहता हैं
और बनाता हैं लोगों के लिए आईना
जिससे लोग
एक आदमी को तो कम से कम पहचान सके।।

नीतीश मिश्र  

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