संयोगवश या
संघर्ष करते हुए
देवदारू का पेड़
पहाड़ से या अपनी
बिरादरी से अलग होकर
मैदान में ......
एक अछूत की तरह
खड़ा भर था,
बिरादरी से या जाति से
अलग होना
मनुष्यों के लिए
किसी कोढ़ से कम नहीं था।
जब भी कोई कारवां गुजरता
देवदारु के लिए
किसी गाली से कम नहीं था
गाँव में यह खबर
कुत्ते की आवाज की तरह फ़ैल गयी
एक अपशगुन पेड़
गाँव में जवान हो रहा हैं ..........
जवानी में स्नेह अगर
चाँद को भी नहीं मिलता
तब उसमे भी शायद इतनी
चाँदनी नहीं होती
लेकिन देवदारु का संघर्ष
किसी भी हीरे से कम नहीं था,
देवदारु:समूह से उपेक्षित होकर
इस कदर मौन हो गया कि
अपने सौन्दर्य को ही भूल गया,
प्रत्येक साधना की,
हर संघर्ष की
अपनी एक सीमा होती हैं
क्योकि धरती भी कहीं न कहीं
सीमित ही होती हैं .............
गाँव:में ही एक लड़की थी
जो वर्षों से कुछ खोजते हुए
अपने आप से उब चुकी थी
या थक चुकी थी
और इस कदर थक चुकी थी कि
लड़की होने के अपराध को भी भूल चुकी थी,
एक रात :जब सब जाग रहे थे
और सभी सो भी रहे थे
लड़की को समय मिल गया कि
वह देवदारु को देख सकें
ज्योहीं उसकी नजर की किरण
पेड़ पर गिरती हैं
देवदारु जाग जाता हैं
और बहने लगता हैं
लड़की के अन्दर स्वरों के
कई सारे दीये जलने लगते हैं,
लड़की:को लगता हैं कि
यही उसकी खोयी हुई
अभिव्यक्ति हैं
या कोई पायी हुई पानी की धार हैं
देवदारु:भी भोर तक
यही सोच रहा था
क्या जब आँखों में कोई चेहरा
अपना होता हैं?
तभी जीवन की मुक्ति
यात्रा शुरू होती हैं .............
सुबह की पहली किरण
ज्योही धरती के जिस्म से टकराती हैं,
मैदान की उर्वर मिटटी में
प्रेम का बीज आँख खोलता हैं,
जब प्रेम के लिए कोई जागता हैं
तब सबसे पहले वह
अपने हिस्से का समय चुराता हैं
दोनों जब समय दान करके रिक्त हो जाते हैं
देवदारु:लड़की से एक दिन
महादान माँगता हैं
और लड़की शीत सी
उसकी जड़ों में ठहर जाती हैं
लड़की सुबह -सुबह एक दीया जलाकर
पेड़ के नीचे बैठ जाती हैं
देवदारु लड़की को अपनी
छाया से रंगकर
उसके स्वर में एक राग भरता हैं
और ऐसे ही वे मुक्ति का
इंद्रधनुष खीचतें हैं ................
एक दिन लड़की देवदारु की जड़ों में
समाधिस्थ होकर कहने लगी
मैं:रोज --रोज नहीं आऊँगी मिलने
अब"तुम मुझे एक वृत्त में रखों"
ज्योही जीवन में प्रश्न उपस्थित होता हैं
अस्तित्व को हमेशा अर्थ मिलता हैं
क्योकि प्रश्न सजीव होते हैं ............
देवदारु:एक बार आकाश को देखता हैं
और एक बार हिमशिखर को
लड़की को जड़ों से उठाकर
प्राणों के समीप खींचता हैं
और शम्भू से कहता हैं कि
केवल तुम ही नहीं अर्धनारीश्वर नहीं हों
इतने में गाँव में
धूप की तरह
यह खबर फ़ैल गयी कि
देवदारु का पेड़ गिर गया
और लड़की दब कर मर गयी
गाँव पुरा खुश हुआ
और कहने लगे लोग
चलो!बला तो टली
पर लड़की और देवदारु बहुत खुश हैं
क्योकि अपनी प्यार की आत्मकथा को
बस वे ही जानते हैं ....................
नीतीश मिश्र ..............16.01.2013
बढ़िया नीतीश भाई ..........
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