Friday 25 January 2013

मेरा खुदा ...

मेरी आँखों में ही मेरा हरम हैं
और मेरी मुस्कान में ही मेरी नमाज़ हैं
मेरी परछायी में ही मेरा महबूब
और मेरे दिल में हिंदुस्तान की तस्वीर हैं,
जो हवाएं मुझे छुकर गुजरती हैं
उसमे मेरे खुदा का रूह हैं।
और जो मेरे पास अदब का लिबास हैं
उसी में मेरे अब्बा की तालीम हैं
और जो मेरा बिस्तर हैं
वही मेरा काबा हैं .....
मेरी उम्मीदों की रोशनी
हाथ की लकीरों में नहीं हैं
बल्कि मेरी बांहों में हैं
पाँव में बांध के रखा हुआ हूँ मंजिलों को
इसलिए फ़रिश्ते भी मुझे इन्सान ही नजर आते हैं।
जब कभी माँ की नजरे मुझे छूती हैं
उसी दिन मेरी ईद होती हैं
रोज़ा का हर पहर यही एहसास दिलाता हैं
लोग अभी भी भूखे हैं
ताजमहल का चेहरा मेरे घर के चूल्हे जैसा हैं
और मेरा इमाम दुनिया को कोई दुआ न देकर
इंसानियत का रास्ता बनाने में लीन हैं
उसे कुरान की आयते याद नहीं हैं
पर उसे इतना जरूर मालूम हैं कि
शहर का कौन सा बच्चा
अभी स्कूल नहीं गया हैं
मेरा खुदा आज घायल होकर चिल्ला रहा हैं
या डरा हुआ ट्रेन में अपनी सीट से
आखिरी बार दुनिया को देख रहा हैं
क्योकि उसे मालूम हो गया हैं कि
उसके जीने की संभावना अब दूसरों के हाथों में हैं।।

नीतीश मिश्र

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