Monday 21 January 2013

उपस्थिति .........

जीवन को मैंने 
सीप में से निकालकर 
सुबह --सुबह  धूप में ...
 एक खुशबू की तरह बिखेर दिया,
या फूलों/पत्तों में गूँथ दिया 
या गौरेया की आवाज में 
बांध दिया ....
जीवन की यही निधि लिए 
मैं,अपने गुबार होते हुए दिल को 
एक वृक्ष बना दिया 
या कुदाल/हँसिया की 
एक धार बना दिया 
जो जीवन की हर लहर पर 
अपनी दस्तक देता रहेगा ..........।।


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