जीवन को मैंने
सीप में से निकालकर
सुबह --सुबह धूप में ...
एक खुशबू की तरह बिखेर दिया,
या फूलों/पत्तों में गूँथ दिया
या गौरेया की आवाज में
बांध दिया ....
जीवन की यही निधि लिए
मैं,अपने गुबार होते हुए दिल को
एक वृक्ष बना दिया
या कुदाल/हँसिया की
एक धार बना दिया
जो जीवन की हर लहर पर
अपनी दस्तक देता रहेगा ..........।।
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