Friday 25 January 2013

एक स्वप्न

एक रात:
मैंने सपना देखा कि
चाँद मुझसे
कुछ कह रहा हैं ...
"ये जो सितारे देख रहे हो
ये सही मायने में मेरी
आँखों के आँसू हैं
और जो मुझमे दाग दिखता हैं
वह कोई धब्बा नहीं हैं
बल्कि मैंने भी एक बार
सीना फाड़कर उसे दिखाया था कि
तुम्हारा वजूद मैं कहाँ तक सुरक्षित रखा हुआ हूँ।
पर ये दुनिया तो सिर्फ हनुमान को स्वीकारती हैं
यह जख्म तभी का हैं भाई
जब वह आखिरी बार मुझसे मिलने आयी थी
चाँद फिर कहता हैं
धरती पर,मैं अपनी चाँदनी नहीं बिखेरता
बल्कि अपने तन पर
लिपटी हुई शाल को गिरा देता हूँ
यह सोचकर कि
शायद!उसके पाँव के निशान ही कहीं दीख जाएँ
पर अफ़सोस ....
कुछ दिन के लिए मैं
बादलों में छुप जाता हूँ
यह सोचकर कि
आज मेरी उपस्थिति आसमान में न देखकर
शायद !घबरा जाये
और मेरी तबियत के बारे में जानने के लिए
शायद एक नजर ऊपर कर ले
लेकिन न जाने वह अब किधर से हैं कि
हवा का कोई झोंका भी उधर से नहीं आता
मैं हैरान हूँ कि
इस दुनिया में भला
उसने ऐसा कौन सा जहाँ बना डाला
जहाँ से उसकी कोई आवाज भी नहीं आती
और मैं ना जाने क्यों उसे
अजान के हर लब्ज में खोजता हूँ
इबादत के हजारों रंग में
पहचानने की एक कोशिश करता हूँ
इस उम्मीद के साथ कि
जो दिल में बुखार उबल रहा हैं
वह कुछ देर के लिए ही सही
पर राख हो जाये
और एक बार मैं भी कह सकूँ कि
सपनों के ऊपर पाँव रखकर
हाथ से सूरज को पकड़ा हूँ
इसी तम्मना के साथ पूरी
रात जागता रहता हूँ"
इतने में
स्वप्न टूट जाता हैं
जैसे यही लगता हैं कि
वह भी मेरी आँखों में बैठकर
सपना देख रही थी

नीतीश मिश्र 

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