क्या मैं लौटकर आऊँगा
तो पहचान लिया जाऊंगा
जब एक फूल की तरह हँसते हुए
रंगों की भाषा बोलूँगा
या तुम्हारें साथ हर
क्षण चलूँगा .....
क्या मैं पहचान लिया जाऊंगा?
जब मैं,अगरबत्तियों की महक की तरह
तुम्हारे बदन को
स्पर्श करते हुए गुजरूँगा
या कौवे की तरह
मुंडेरे पर बैठकर
अपनी दस्तक देता रहूँगा।
मैं,आऊंगा
हवा के झोंके की तरह
और बंद पड़ी थिड्कियो को खोलूँगा
और बारिश की
बूंद की तरह आऊंगा
और भिगों दूंगा
अरगनी पर
पसारे गए कपड़ों को
और मैं आऊंगा
चाय की पत्तियों की तरह
तुम्हारे जिस्म के पोर -पोर
मैं फ़ैल जाऊंगा
हाँ!मैं आऊंगा
और एक सिंदूरी आभा की तरह
सदा के लिए
तुम्हारे मांथे पर
ठहर जाऊंगा ......।।
नीतीश मिश्र
तो पहचान लिया जाऊंगा
जब एक फूल की तरह हँसते हुए
रंगों की भाषा बोलूँगा
या तुम्हारें साथ हर
क्षण चलूँगा .....
क्या मैं पहचान लिया जाऊंगा?
जब मैं,अगरबत्तियों की महक की तरह
तुम्हारे बदन को
स्पर्श करते हुए गुजरूँगा
या कौवे की तरह
मुंडेरे पर बैठकर
अपनी दस्तक देता रहूँगा।
मैं,आऊंगा
हवा के झोंके की तरह
और बंद पड़ी थिड्कियो को खोलूँगा
और बारिश की
बूंद की तरह आऊंगा
और भिगों दूंगा
अरगनी पर
पसारे गए कपड़ों को
और मैं आऊंगा
चाय की पत्तियों की तरह
तुम्हारे जिस्म के पोर -पोर
मैं फ़ैल जाऊंगा
हाँ!मैं आऊंगा
और एक सिंदूरी आभा की तरह
सदा के लिए
तुम्हारे मांथे पर
ठहर जाऊंगा ......।।
नीतीश मिश्र
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