Thursday 10 January 2013

कबीर का होना

सैतालीस के बाद .....
पाकिस्तान का बनना
और कबीर,नजीर का
जीना मरने से भी
बुरा हो गया .......

रोटी-दाल की चक्की
हवा की तरह कभी मौसम की तरह
सरकती रही .........

पर किसी को कभी यह जानने की
कोई जरूरत नहीं हुई कि
कबीर भी कभी हँसता हैं की नहीं
कबीर पर लोगों की आँखें तभी गिरती थी
जब किसी को अपना फटा हुआ कपड़ा
सिलाना होता था

बाकि समय के लिए
कबीर लोगों के लिए
एक मुसलमान हो जाता था
आजादी के बाद मुसलमान होना
अपने आप में किसी रोग से कम नहीं था
फिर भी कबीर खुश था
क्योकि यहाँ वह पैदा हुआ था
पर जबसे बाबरी मस्जिद गिर गयी
कबीर का पुरा कुनबा गिर गया
अब कबीर लोगों की निगाह में आदमी नहीं
एक गाली बनकर रह गया था
कबीर की पहचान अपनी ही माटी में
संदेह की तरह या कांटे की तरह हो गया था .........

नीतीश मिश्र .....11.1.2013.........


1 comment:

  1. bahoot khoob mishra ji. kabir ki jarurat har uss aadmi ko hai jo aaj shosit hai.

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