Monday, 30 May 2016

लिफाफे में कुछ नहीं था

जिंदगी के लिफाफे में कुछ नहीं था 
सिवाय सवाल के 
और मैं एक संदेह की तरह 
बिजली के तार में उलझा हुआ था 
मेरे शहर में रोज दर्जनों ट्रेनें उम्मीद लेकर आती थी 
और हर रोज दर्जनों ट्रेनें मेरे शहर से लोगों का भय लेकर एक अंतहीन सफर में लेकर जा रही थी
इस बीच जब भी लिफाफा खोलता था
हाथ में एक सन्नाटे के सिवाय कुछ नहीं
जिंदगी के आयतन बढ़ते गए
पर सवाल का क्षेत्रफल वही था
जितना बन्द लिफाफे का।।

No comments:

Post a Comment