सुबह सुबह
एक औरत को पतंग की तरह
आसमान में उड़ते हुए देखता हूँ
एक औरत को दोपहर में
धूप में अपनी त्वचा को रंगते हुए देखता हूँ
शाम को एक औरत को दरवाजे में तब्दील होते हुए देखता हूँ
रात में तीनों औरतों को
पसीनें में डूबते हुए देखता हूँ
औरते पसीने की परिधि से बाहर आकर
अपने रंग का केंद्र बनना चाहती है।।
एक औरत को पतंग की तरह
आसमान में उड़ते हुए देखता हूँ
एक औरत को दोपहर में
धूप में अपनी त्वचा को रंगते हुए देखता हूँ
शाम को एक औरत को दरवाजे में तब्दील होते हुए देखता हूँ
रात में तीनों औरतों को
पसीनें में डूबते हुए देखता हूँ
औरते पसीने की परिधि से बाहर आकर
अपने रंग का केंद्र बनना चाहती है।।
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