मैं अपने शरीर में नहीं हूँ
मैं जब भी अपना चेहरा खोजता हूँ
मुझे अपने शरीर में
इतिहास की कलाकृतियां मिलती है
जब सचेत होकर खोजता हूँ
तब मुझे नींद मिलती है
तब मुझे कुछ सपने मिलते है
कुछ दुःख मिलता है
कुछ असफलताएँ मिलती है
कुछ संभावनाएं मिलती है
लेकिन अपने शरीर में मुझे अपना चेहरा नहीं मिलता
बहुत मेहनत करता हूँ
तब थक कर यही कहता हूँ
मैं मुस्कान में भी हूँ
मैं दुःख में भी हूँ
मैं अतीत और भविष्य में हूँ
कभी कभी अपनी हार में भी अपनी ही विजय लिखनी होती है
शायद यह पहली हार थी धरती पर एक मनुष्य की।।
मुझे अपने शरीर में
इतिहास की कलाकृतियां मिलती है
जब सचेत होकर खोजता हूँ
तब मुझे नींद मिलती है
तब मुझे कुछ सपने मिलते है
कुछ दुःख मिलता है
कुछ असफलताएँ मिलती है
कुछ संभावनाएं मिलती है
लेकिन अपने शरीर में मुझे अपना चेहरा नहीं मिलता
बहुत मेहनत करता हूँ
तब थक कर यही कहता हूँ
मैं मुस्कान में भी हूँ
मैं दुःख में भी हूँ
मैं अतीत और भविष्य में हूँ
कभी कभी अपनी हार में भी अपनी ही विजय लिखनी होती है
शायद यह पहली हार थी धरती पर एक मनुष्य की।।
नीतीश मिश्र
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