Monday 30 May 2016

मैं नहीं हूँ

मैं अपने शरीर में नहीं हूँ 
मैं जब भी अपना चेहरा खोजता हूँ
मुझे अपने शरीर में 
इतिहास की कलाकृतियां मिलती है
जब सचेत होकर खोजता हूँ
तब मुझे नींद मिलती है
तब मुझे कुछ सपने मिलते है
कुछ दुःख मिलता है
कुछ असफलताएँ मिलती है
कुछ संभावनाएं मिलती है
लेकिन अपने शरीर में मुझे अपना चेहरा नहीं मिलता
बहुत मेहनत करता हूँ
तब थक कर यही कहता हूँ
मैं मुस्कान में भी हूँ
मैं दुःख में भी हूँ
मैं अतीत और भविष्य में हूँ
कभी कभी अपनी हार में भी अपनी ही विजय लिखनी होती है
शायद यह पहली हार थी धरती पर एक मनुष्य की।।
नीतीश मिश्र

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