Monday 30 May 2016

मेरे शहर की सड़के

जब भी तुम्हारें शहर से
कोई ट्रेन आती है
मुझे लगता है एक खुशबू आ रही है
और मैं बादलों की तरह
अपने शहर की मिट्टी में उमड़ने लगता हूँ 
जब ट्रेन आती है
स्टेशन पर असंख्य उदास चेहरे
असंख्य उदास पांव
ढ़ेरो बेरोजगार हाथ
मेरे शहर की सड़कों पर अपना अर्थ खोजने लगते है
मैं उदास होकर अपने ही भीतर अस्त हो जाता हूँ
एक नई सुबह चौराहे पर
सभी सड़के उदास दिखाई देती है
सड़को से उनकी उदासी पूछता
तब सड़क धीरे से कहती है
चौराहे पर रखा हुआ लेटर बॉक्स
वर्षो से उदास है
जब तक मेरे शहर का लेटर बॉक्स उदास रहेगा
मेरे शहर की सड़के कभी किसी को
मंजिल तक नहीं लेकर जाएगी।।
नीतीश मिश्र

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