Thursday 21 May 2015

मुझे देखने दो स्वप्न

इतिहास फिर बदलने वाला है
नये आसमान में फिर सूर्योदय होने वाला है
ऐसे में मुझे देखने दो स्वप्न
क्योंकि अखबार भी अब झूठ बोलना शुरू कर दिए
सिर्फ एक सपने ही ऐसे सफेद रोशनी की तरह बचे हुए है
जहां से पहुंचा जा सकता है
शब्दों की दुनिया  में।
मुझे देखने दो स्वप्न
क्योंकि अब नहीं रहने वाली है यह दुनिया
अपनी दुनिया के रंग को मैं आखिरी बार सपनों में देखना चाहता हूं
मैं सपनों में देखना चाहता हूं
एक बच्चा खोज रहा है अपनी खोई हुई गेंद
इस उम्मीद से कि अगर गेंद मिल गई तो एक बार वह पृथ्वी को अपने हाथ में घुमा सकता है
मैं देखता हूुं  के  झूंड   झूंड लड़कियां हंसी क स्वर को सफर में रंगती हुई
घर की दीवारों में एक फूल उगा रही है
एक मां देहरी पर खुश है जबकि सूरज डूब चुका है
यह सोचकर उसका बेटा सही रास्ते पर है
मैं सपने में देखता हूं
एक मजदूर आखिरी बार जब सूरज अस्त होने वाला होता है
उठाता है मुक्का और आसमान में टंगा हुआ गुब्बारा फट जाता है।
मैं देखता हूं एक घर जो इस उम्मीद में खुश है
क्योंकि घर में रहने वाले सदस्य अपने चेहरें पर हंसी की रेखा को बनाए हुए है।
मैं देखता हूं एक स्वप्न
देश के और मनुष्यों के जीवन को मिटाया जा रहा है
और उन्हें लग रहा है वह संविधान का संशोधन कर रहे है।
मैं आखिरी बार स्वप्न देखता हूं एक चिड़िया धरती से आजाद हो गई है।।
नीतीश मिश्र

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