Saturday 16 May 2015

बुरे- बुरे ख्वाब आते है

जबसे दिल्ली के आसमान में
लाल -लाल रंग के गुब्बारे हवा में उड़ने लगे
उस दिन से रात में बुरे- बुरे ख्वाब आने लगे
अब मैं पूरी रात जागते हुए कभी अपने देह पर तो कभी अपनी स्मृतियों पर
लगातार पहरा देता हूं
अपने हिस्से के आसमान में
मैं नहीं देखना चाहता हूं
कोई लाल रंग
इसलिए मैं अपने आसमान को बचाने की खातिर
अपने हिस्से के आसमान को और गंदा करता हूं
इस उम्मीद से कि उन्हें गंदी चीजें अच्छी नहीं लगती है
लेकिन वे राजा है
उन्हें कुछ भी पसंद आ सकता है।
जैसे उन्हें इन दिनों पंसद आ रहा है
किसानों की जमीन
इसलिए किसानों की जमीनों को वे लाल रंग से रंगने में इन दिनों लगे हुए है
मुझे भी अब बहुत डर लगता है
यह सोचकर कि कहीं वे
मेरे दोस्तों को भी लाल रंग से न रंग दे।
ऐसे में मैं अब पूरी रात जागता हूं
और बार- बार कमरे से उठकर बाहर झांकता हूं
और देखता हूं अपने पड़ोसी के छत को
तब कहीं जाकर थोड़ी सी तसल्ली मिलती है।
 लेकिन मेरी यह तसल्ली अब बहुत दिन तक मेरे साथ नहीं रहने वाली है
क्योंकि दिल्ली में सुल्तान बैठता है
और उसकी निगाह में पूरी दुनिया उल्लूं है
इसलिए वह लिखवा रहा है अपना पंसदीदा इतिहास
ऐसे में अब मैं
नहीं सोच पाता हूं
अपने मोहल्ले की कहानियों के बारे में
नहीं सोच पाता हूं
जो मेरे दोस्त है वह ताउम्र ऐसे ही रहेंगे।
ऐसे मेंं मैं एक दिन खत्म हो जाउंगा
जैसे खत्म हो रही है
आंगन से धूप।
ऐसे में अब मुझे बुरे- बुरे ख्वाब आते है।
नीतीश मिश्र

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