स्त्रियां धरती पर दूब की तरह हैं
हम उनकी जड़े जितनी बार काटेंगे
हम जितनी बार उन्हें धमाको से डराएंगे
वह उतनी ही बार आयेगी ....
तुम धरती पर स्त्रियों को आने से नहीं रोक सकते हो
स्त्रियां धरती की वसंत हैं
स्त्रियों को मारकर तुम जीतते नहीं हो कोई युद्ध
उन्हें तुम जीतनी बार मारते हो
उतनी बार तुम इतिहास के पन्नो पर अपनी पराजय लिखते हो
स्त्रियां धरती पर चलती रहेंगी दौड़ती रहेंगी
क्योकि वे धरती की केंद्र हैं और तुम मात्र एक त्रिज्या हो ....
स्त्रियां आएँगी
उस वक्त भी जब एक मनुष्य केवल एक मनुष्य बचा रहेगा
और सभ्यता की अंतिम सीढ़ी पर खड़ा होकर जीवन मांगेगा
स्त्रियां आएगी उस वक्त भी
जब धरती पर मनुष्य नहीं रहेगा
और रचेंगी अपनी हँसी से
सूखी दीवारों में एक गीत
और बनाएंगी कुएं को एक आइना
और दूब की तरह पूरी धरती पर लिखेंगी एक भाषा ॥
हम उनकी जड़े जितनी बार काटेंगे
हम जितनी बार उन्हें धमाको से डराएंगे
वह उतनी ही बार आयेगी ....
तुम धरती पर स्त्रियों को आने से नहीं रोक सकते हो
स्त्रियां धरती की वसंत हैं
स्त्रियों को मारकर तुम जीतते नहीं हो कोई युद्ध
उन्हें तुम जीतनी बार मारते हो
उतनी बार तुम इतिहास के पन्नो पर अपनी पराजय लिखते हो
स्त्रियां धरती पर चलती रहेंगी दौड़ती रहेंगी
क्योकि वे धरती की केंद्र हैं और तुम मात्र एक त्रिज्या हो ....
स्त्रियां आएँगी
उस वक्त भी जब एक मनुष्य केवल एक मनुष्य बचा रहेगा
और सभ्यता की अंतिम सीढ़ी पर खड़ा होकर जीवन मांगेगा
स्त्रियां आएगी उस वक्त भी
जब धरती पर मनुष्य नहीं रहेगा
और रचेंगी अपनी हँसी से
सूखी दीवारों में एक गीत
और बनाएंगी कुएं को एक आइना
और दूब की तरह पूरी धरती पर लिखेंगी एक भाषा ॥
शब्दविन्यास के पार.... स्त्री समाज का चित्रण ... नये रूपकों के साथ .. बेहतरीन ... लाजवाब
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