Wednesday 19 June 2013

मैं, नहीं जानता था

तुम मुझे इतना मानती हो
कि कसमे भी ...
तुम्हारे विश्वाश के आगे
कुछ फीकी सी लगती हैं ....

मैं, नहीं जानता था कि
तुम मुझे इतना प्यार करती हो
जितना होंठ तुम्हारी हँसी को चाहता हैं .....

आज जब गंगा की कसम खाकर कहने लगी ...
मैं तुम्हें बहुत प्यार करती हूँ ....
तब मुझे पता चला की गंगा इंतनी पवित्र क्यों हैं .....

नीतीश मिश्र

1 comment:

  1. वाह ,,,,तारीफ़ को अब कोई शब्द ही नहीं बचे

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