एक मजदूर के पास इंतना भी समय नहीं होता हैं
कि वह अपनी प्रेमिका से प्यार कर सके ...
शाम को डूबते सूरज की आंच में
जब अपने लिए रोटी सेकता हैं .....
रोटी को आईना समझकर
निहारता हैं ....
अपना चेहरा ....
और उसे याद आता हैं
कि वह दिन जिस दिन प्रेमिका ने गाल पर चूमा था ....
इसी याद के साथ थोड़ी देर
हँसते हुए चाँद को देखकर रोता हैं .....
उसका चेहरा अब वह चेहरा नहीं रह गया
जिस चेहरे को उसने जी भरकर चूमा था ....
फिर गंभीर होकर
रोटी को ही चूमता हैं
इस उम्मीद में की वह भी कहीं
रोटी ही तो बना रही होगी ....
और मैं भी एक रोटी के लिए ही तो प्रदेश में मर रहा हूँ ....
तबसे हर मजदूर के लिए
रोटी ही एक प्रेमिका जैसी लगती हैं ........
कि वह अपनी प्रेमिका से प्यार कर सके ...
शाम को डूबते सूरज की आंच में
जब अपने लिए रोटी सेकता हैं .....
रोटी को आईना समझकर
निहारता हैं ....
अपना चेहरा ....
और उसे याद आता हैं
कि वह दिन जिस दिन प्रेमिका ने गाल पर चूमा था ....
इसी याद के साथ थोड़ी देर
हँसते हुए चाँद को देखकर रोता हैं .....
उसका चेहरा अब वह चेहरा नहीं रह गया
जिस चेहरे को उसने जी भरकर चूमा था ....
फिर गंभीर होकर
रोटी को ही चूमता हैं
इस उम्मीद में की वह भी कहीं
रोटी ही तो बना रही होगी ....
और मैं भी एक रोटी के लिए ही तो प्रदेश में मर रहा हूँ ....
तबसे हर मजदूर के लिए
रोटी ही एक प्रेमिका जैसी लगती हैं ........
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