Thursday 6 June 2013

आँखे ..

मैंने अपनी संस्कृति को
संभालकर नहीं रख पाया आज तक .....
मैंने अपने ईश्वर को भी नहीं संभालकर कर रख पाया ...
यहां तक कि बाबूजी की बहुत सारी यादें भी
सपनों की तरह भूलता गया ......
लेकिन हाँ ....
मैं संभालकर कर रखा हुआ हूँ ....
अपनी आँखे ....
जो आने वाले इतिहास को कह सकती
बिना किसी खौफ के की इतिहास झूठा हैं ...
क्योकि मेरी आँखे देखी हैं ...
अयोध्या में हो रहे दंगें को
और गुजरात में जाहिद को मरते हुए ...
मेरी आँखे देखी हैं
की लाल किला पर एक उल्लू बैठकर कहता हैं ...
दुनिया बहुत सुन्दर ......

माफ़ करना भाइयों !
मैं नहीं बचा कर रख सका तुम्हारे सपनों को ..
हाँ !लेकिन माँ का हँसता हुआ चेहरा जरूर अपने पास बचा कर रखा हूँ ...
क्योकि मेरी माँ खुदा और मेरी प्रेमिका दोनों से सुन्दर लगती हैं ....

नीतीश मिश्र

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