Friday, 10 July 2015

मुझे केवल भिखारी पहचानता हैं

इस शहर में
मैं सुबह -शाम की तरह जिन्दा हूँ
इसके बावजूद भी
तुम्हारे शहर में
मुझे केवल भिखारी पहचानते हैं…
कभी -कभी तुम्हारे शहर के
कुछ कुत्ते भी पहचानने की कोशिश किये
इस कोशिश में कुत्तो ने
अपनी बहुत सारी  ऊर्जा भी ख़त्म कर चुके हैं
लेकिन कुत्ते नहीं पहचान सके मुझे
कुत्तो ने मुझे उतना ही पहचाना
जिससे उनको मुझसे नुकसान न हो !
कभी -कभी सोचता हूँ
यदि मैं यहाँ नहीं आया होता
तो  क्या तेरा शहर दूसरो के साथ ऐसा ही व्यवहार करता ?
तुम्हारे शहर के देवता भी
नहीं सुनते मेरी प्रार्थना
और न ही हवा भी
इस तरह मैं तुम्हारे शहर में
एक लोटे की तरह किसी अँधेरे में डूबा हुआ हूँ ....
कभी -कभी मैंने यह जानना चाहा की
क्या मैं तुम्हारे शहर में खुद को कितना पहचानता हूँ
 मेरे धरातल से एक ही आवाज उठता हैं
यह समय खुद को पहचानने का नहीं हैं
यह समय अँधेरे का हैं
और मुझे बचाना हैं अपने समय को जिससे
मेरा समय बच सके तुम्हारे रंग से
कभी कभी सोचता हूँ
लौट जाऊं अपने शहर
लेकिन वहां भी तो कोई नहीं हैं जो मुझे पहचान सके
मेरे समय के सभी दोस्त
अपने -अपने समय के रंग को नाले में छोड़कर
अपनी भूख पर कलई करने में लगे हुए हैं
मेरे शहर में
न तो अब वह हवा हैं
और न ही वह धूप
और न ही वह पेड़ जो मुझे कभी पहचानते थे
मैं तुम्हारे शहर में जिन्दा हूँ
एक मशीन की तरह
और एक समय के बाद
मशीन की तरह कबाड़ख़ाने का विषय हो जाऊंगा
यह समय का
शायद कबाड़ख़ाने होने का हैं ॥
नीतीश मिश्र

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