मैं , जब भी कभी थोड़ा उदास होता हूँ ...
मैं, जब कभी अन्दर से थोड़ा टूटता हूँ ...
तुम्हारी हंसी की महक से
अपने को कुछ देर के लिए सजा लेता हूँ .....
जनता हूँ इस बात को कि अगर कभी बाढ़ की तरह
उत्तेजित होकर भी तुमसे मिलने की कोशिश करूँगा
तो भी एक पल के लिए नहीं मिल पाउँगा .....
क्योकि तुम एक रंग हो और मैं एक शब्द भर हूँ ....
इसलिए कभी --कभी सतह से उठकर सपनों के
धरातल पर पाँव रखता हूँ ..
यह सोचकर की सपनों में तुमसे मिलने की खबर किसी को भी भनक तक नहीं लगेगी
नीतीश मिश्र
मैं, जब कभी अन्दर से थोड़ा टूटता हूँ ...
तुम्हारी हंसी की महक से
अपने को कुछ देर के लिए सजा लेता हूँ .....
जनता हूँ इस बात को कि अगर कभी बाढ़ की तरह
उत्तेजित होकर भी तुमसे मिलने की कोशिश करूँगा
तो भी एक पल के लिए नहीं मिल पाउँगा .....
क्योकि तुम एक रंग हो और मैं एक शब्द भर हूँ ....
इसलिए कभी --कभी सतह से उठकर सपनों के
धरातल पर पाँव रखता हूँ ..
यह सोचकर की सपनों में तुमसे मिलने की खबर किसी को भी भनक तक नहीं लगेगी
नीतीश मिश्र
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